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कविताओं में छुपा जीवन -मेरा कवि मन कोरा कागज

मेरा कवि मन एक कोरा कागज  प्रभु छापी अविचलसूंदर रेखा,जिसने भविष्य को देखा, हां मैने भविष्य को देखा,-2 कलयुग काल डरावनी हाल प्राकृतिक ने सब कुछ तोड़ दिया,ज्यों किया बहुत उत्पात मनुज ने एक वायरस ने बुरा हाल किया, शोध दिए सब पेड़ धरा के मा के वस्त्र सिर सार किया, जितने जीवों की हुई हत्या थी सब का बदला उतार लिया,काटे पेड़ सांस के लाले,हे मानव मूर्ख कहलवायेगा गा, ज्ञान और त्यागमय जीवन ऋषियों का याद कब आएगा, बन गया जीव तू नारभकसी खुद का माँस तू खायेगा, जीव के प्रति नहीं रही दया, क्या कहेगा धर्म का लेखा, कब तक जीवन जियेगा यूँ करके सब अनदेखा। विकास तंवर सन 02में जब ऐसा हाल विचारा था, तब लेखन की मेरी आयु ना थी कागज पे नहीं उतारा था,फिर भी पढ़ाई फोन से होगी ,खरीदारिया लोन पे होंगी, एक कॉपी में लिख डारा था, जिसे पढ़ा भविष्य के एक अध्यापक ने ओर बार बार ये पुकारा था क्या सचमुच ऐसा होगा या यूं ही तुक्का मारा था,। जब 20 में दुकाने बन्द हो गई, चींटी झूम चंद हो गई, फिर वही विचार-विचारा था, फोन पे मुझे बताया उसने, ये सब तो है वैसा ही जैसा विचार तुम्हारा था 'कालेज के दिन 'एक लेख में विकास तंवर लिखडार...

कविताओं में छुपा जीवन -हस्ती है

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