संदेश

विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल पर विशेष कविता। मां शारदे से प्रार्थना #पुष्प चढ़ा कर माँ शारदे आया हूँ मैं वंदन को,तेरी कृति हाथ लिए ,द्वार खड़ा अभिनंदन को

चित्र
पुष्प चढ़ा कर माँ शारदे आया हूँ मैं वंदन को, तेरी कृति हाथ लिए ,द्वार खड़ा अभिनंदन को आदि काल में लिखी गई तो' वेद' नाम दिया था, रामायण कभी 'महाभारत' बन दूर शाम किया था, होती नहीं कृपा तो पढ़ते कैसे अपने जीवन को कैसे लेते सीख मस्तिक से ज्ञानार्जन के दर्पण को, पुस्तक बना के दे दी धरा पे रोशन करने हर जन को पुष्प चढ़ा कर माँ शारदे आया हूँ मैं वंदन को, तेरी कृति हाथ लिए ,द्वार खड़ा अभिनंदन को अपने ह्रदय के उज्ज्वल भावज्ञानी कैसे लिख पाते नई राही में पूरा काल के अनुभव कैसे फिरदिखपाते, बिना स्यामपट्ट उतर नहीं सकती जैसे शब्दों की बारी, याद ना रहती लिखी ना जाती बेहतर गाथाएं सारी।प्रमाणित कोई बात ना होती ,वजूद लेख है अर्पण को पुष्प चढ़ा कर माँ शारदे आया हूँ मैं वंदन को, तेरी कृति हाथ लिए ,द्वार खड़ा अभिनंदन को पुस्तक रुप में ही तेरी कीर्ति पुस्तकालयों में सजी है, जग मंदिर मस्जिद से बढ़ कर भगतों की भीड़ लगीहै जिसको पढ़ के बेसहारो की किस्मत खूब जगी है, कहीं कहीं मूरख बुद्धि पे फिर भी धूल चढ़ि है पोथी पढ़ शिक्षयाएँ ले भीअक्ल लगी न कुछ जन को पुष्प चढ़ा कर माँ शारदे आया...

प्यारी प्रगीत: विकास तंवर खेड़ी

चित्र
Poem :Vikash Tanwar Kheri काव्य दिवस पर विशेष विकास तंवर खेड़ी द्वारा " निकली वीरांगना सीना तान, जिसे देख के आंखें ठहर गई। जिसे सुना तो पब्लिक मुखर गई, एक भाव भंगिमा बदल दे जो वो श्याही सी मन पर छिटक गई, जिसके सुन बोल हुए सब गोल गले से वाह वाह निकरे बोल, पवित्र शब्दो की गंग में नहा , एक चमक सी मय में निखर गई, कवि के मुख की सरस्वती, हरसा दे वो जो भाग्य वती, छिटका दे सबकी खोल मति, बन काव्य सुरों को सटक गई। बन प्रतिमा सत्य की उतरी जो कभी हर्सन, रोदन, सौंदर्य भरी, कभी लगे चुटुकला ठठे का, कभी लगे राज्य की फूल परी, कवि ओजी सक्ति सी  हरी भरी जो करके_ चली सिखाने जीवन को विकास तंवर मैं लूं जीव्य समर, मेरे मन के इस दिव्य धन को। काव्य रूपी दिव्य मंथन को। " 21मार्च 2022 विश्व काव्य दिवस पर विकास तंवर खेड़ी

खूंखार बकरी :+) शॉट स्टोरी

चित्र
खूंखार बकरी:   शॉर्ट स्टोरी; उसे दौरो आते थे खूंखार होने के वो पहली बकरी थी जिसकी हकिकत और एक्टिंग में कोई फर्क नहीं कर पाया। और ललक थी कुछ कर दिखाने की। बकरियों की महफिल में अक्सर सेर को ललकारती थी। लेकीन उसकी आवाज दबा दी जाती थी। लेकीन आज उसकी कब्र पर लाखों बकरी सीस झुकाती हैं।उसकी शहादत वादियों में गूंजायमान है। ‌  वो दुनियां के सबसे दुधारू कुल में पैदा हुई इंटेलीजेंट जानवर थी नाम था मैडम कोटूू  (कोटो फाड़खाउन) नाम से ही मालूम होता था की बकरियों की जाती की वो शंहशाह रही होगी। रोब एसा की एस. पी  भी हिल जाए लेकीन जंगल में एसपी होता नही ह ना_ बदकिस्मत जंगल।  वो पहाड़ की चोटी पे हरा घास चरने गई। शेर की मांद के ठीक उपर। घास डरते हुए खाया । और उसे नसा सा हो गया खाने के बाद नींद आती ही है।उसे पता था शेर बूढ़ा हो गया है सो रहा है फटका भी नहीं लेता। और शेर नींद में है। लेकीन उसे तो अपनी हवा बनानी थी। उसने घोषणा की की वो महान बकरी है।वो दुनियां को दिखा देगी बकरियों में भी जबर कलेजा होता है। उसने दांत रगड़े जैसे कोलगेट की एड करना चाहती हो। और हिंदी फिल्मों क...

पंख संवार लूं।

चित्र
 पंख संवार लूं। सपनों का महल बनते रोक सकता नहीं अगर डर मेरी उड़ान का क्यों खा रहा मुझको मगर, घुट जाऊं गा खुद के अंदर क्यों न सांस बहार लूं, हां पंख मैं संवार लूं। मार ना तो डर को है, हार ना तो हर(भगवान)को है मैं मरूंगा हार के भी, क्यों फिर डर के हार लूं, कर के मजबूती में बाहें ,वायु के परहार लूं, हां पंख मैं संवार लूं। चाह ह मेरी की की छूना सूर्य के प्रतीरूप को मैं भी हुं कोई परिंदा पी न जाऊं धूप को,  संग्रहित कर के सारी ऊर्जा सर पे अपने डार लूं। हां पंख मैं संवार लूं। होये बेसक ना उजाला जा सकूं मैं पास भी, ये ख़ास हो विश्वास भी की पंख मैं संवार लूं, हां उनको मैं निखार लूं, क्यों नहीं परिंदा बनके आखिरी उडार लूं। हां पंख मैं संवार लूं। काव्य संग्रह: विकास तंवर खेड़ी

परिंदा होने का मतलब Poem by Vikash Tanwar kheri सलीम अली जी को समर्पित कविता

चित्र
परिंदा होने का मतलब परिंदा होने का मतलब ****************** आजादी तो चाहते सब हैं, है इसमें भी कुछ खोने का मतलब, फू ररर से उड़ जाना ही नहीं है  सिर्फ़ परिंदा होने का मतलब। चहचाना हंसी खुशी से, हो जाना गतिमान हवा में, आज़ादी की खुली पंख देती अलग पहचान हवा में, सर्द गर्म का दर्द सहन कर चहका देना दुनिया को सिखलाते हैं पक्षी हर दिन लेना गजब उड़ान हवा में, तपन दोह, झड़ अंधेर, सहना ठिठर बढ़ने का मौसम  बिन बंदूक के खाली ही दो दो हाथ करने का मौसम गतिमान हो पंख खोल के नभ में हरदिन फीर बढ़ने का मतलब फूर रर से उड़ जाना ही नहीं है सिर्फ़ परिंदा होने का मतलब। ***""""""*****""""***** विकास तंवर खेड़ी।

Why Sun 🌞 Sine:Poem Vikash Tanwar Kheri

चित्र
Why Sun 🌞 Sine  Poem: by Vikash Tanwar Kheri Sun sine like gold Do you know many years old, Give to us,somthing his sold. Understand sacrifice no one can told.    Some stars not burn black not light.    Not count and use becouse white,       If you burn  in your hard work,       Light your self and also Spark. A lamp burn what it tell, Burn your ego everything is well, Learn if can by your mistakes, Never take your wick in oil and fail, Vikash Tanwar kheri हिंदी अर्थ: १.सोने की तरह सूर्य चमकाता है। क्या आप जानते हैं क्यों। ये कई साल से ऐसे ही रोसनी देता है। हमें कुछ देता है, अपना कुछ यानी  उसकाखुद का बेच कर या खो कर। यानी ये बलीदान ही है जिसको समझो ,कोई नहीं बता सकता जो सूर्य को रोशन करता है। *****†******* (यानी त्याग व्यक्ति को रोशन करता है, चमकाता है, आलस्य को त्याग विद्यार्थी सफलता प्राप्त कर सकता है।)    ************** २.कुछ तारे काले होते हैं प्रकाश नहीं ह...