खेड़ी तलवाना -वीरभूमि ओर ऐतिहासिक नींव

पिछले कुछ दिनों से जब मैने महेन्दरगढ़ का इतिहास पढ़ा और जानने की इच्छा हुई तो कुछ ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य सामने आये जो जान कर मेरी आँखे खुली रह गई असल मे मेरी इच्छा मेरे गांव के इतिहास को जानने की थी मैने काफ़ी कुछ पढ़ा था मेरे गाँव के बारे मे इसके इतिहास के विषय मे जितना मै या गांव के लोग आमतौर पर जानते हैँ यहाँ मैं ज्यादा नहीं लिख पाया विस्तार से आप अगले लेख पढ़ कर समझ पाएंगे। जहाँ तक लोग जानते हैं तंवरा वटी से आये 2राजपूत सरदारों ने खुडाना और खेड़ी गांव बसाये थे. कहा जाता है की खुडाना को पहाड़ की खोद मे बसाया गया था और खुडाना बसाने वाले सरदार खेड़ी वाले तंवर सरदार के बड़े भाई या चाचा कुछ थे क्योंकि वो आयु मे खेड़ी वालों से बड़े थे आज भी खुडाना गांव को बड़े का दर्जा खेड़ी गांव की तरफ से मिला है. खुडाना मे माता चिलाय या कहें की शीतला माता जी का भी मंदिर है जो प्राचीन है और तंवर वंश से जुडा है। तंवर या जाटू  राजपूत जाती समुदाय का ही एक गौत्र है और खेड़ी तलवाना गांव राजपूतों ने ही बसाया हुआ है। आधुनिक खेड़ी की नीव करीब 700साल पहले पड़ी थी जब राजस्थान से आये राजपूतों ने इसे बसाया था.।लेकिन इसका अस्तित्व अति प्राचीन काल से है। एक समय था जब ओरंगजेब के राज मे यहाँ के योद्धाओ ने मुगलों की इंट से इंट बजा दी  थी और ओरंगजेब को यमुना पार भगा दिया था. और जब ओरंगजेब को यहाँ रहने यानि महेन्दरगढ़ मे किला बना कर रहने का सपना छोड़ना पड़ा था क्योंकि ये छेत्र के लडाके उसके लिए किरकिरी बन गए थे। इस छेत्र को खेड़े के रूप मे बालू पर बसने के कारण सायद खेड़ी नाम दिया गया था लेकिन उन दिनों यहाँ खैर के पेड़ भी  बहुत थे। माना जाता है खैर अलीगढ और इस छेत्र मे दो ही जगह था और नवाब और मुग़ल सब पान खाते थे जिसमें कथा और चुना दोनों चीज यहाँ होती थी। महेन्दरगढ़ मे चुना पत्थर प्राचीन काल से ही मिलता है। खैर यानि कथथा यहाँ खूब था.। खैर के कांटे की तरह चार रास्तो वाला गांव, कांटे की तरह मुगलों के रास्ते मे अड़ गया था। खेर +अडी इसी से इसका नाम मुगलों ने भी स्वीकार किया. सतनामी विद्रोह होने पर विद्रोह को रेवाड़ी महेन्दरगढ़ कनीना मे इस इलाके के वीरो ने ही सुलगाया और मुगलों से आजादी की लड़ाई लड़ी। कहते है खंडवा या खंडवा प्रस्था वनो के कुरुआँचल पर सीमा पर सटे इस गांव ने एक समय मुग़ल और विदेशी आक्रमणकारीयों का बिलकुल रास्ता सील कर दिया था। अमर सहीद ओर देशभगत सेनानियों के गांव में इतने वीर योद्धा हुए हैँ की एक स्पेशल स्मारक बना कर ही इनकी यादों को संजोया जा सकता है  वर्तमान सदी का लंबा इतिहास सैनिकों का रहा है उनकी सहादत की कहानियां अवर्णीय हैं ओर भी बहुत से ऐतिहासिक चीजें हैँ जो इस पीढ़ी क जाननी जरुरी हैं। आदि काल से लेकर  ईचावाकू वंश के श्री राम के पूर्वज राजा दिलीप से लेकर तंवर राजवंशी राजा अनंगपाल की गद्दी तक की सुरक्षा में इस गांव के लोग रहे हैँ आज भी देश सेवा में गांव के घर घर से युवा ओर जवान  गए हुए हैं।

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बाबा भोला गिरी महाराज। 
सूबेदार रामसरूप सिंह तंवर विक्ट्री क्रॉस 
(नोट :-ये लेख समीक्षक निबंध है जिसमें पेड़ पौधों के महत्त्व को ध्यान में रख कर प्राचीन काल में गांव की वर्तमान काल से समीक्षा कर  लिखा गया है इसेपूरा इतिहास कहना  गलत है क्योंकि इसमें अति प्राचीन काल के कुछ तथ्य ही शामिल हैँ  ओर सैन्य इतिहास जो की सबसे महत्वपूर्ण है को  पूरा नहीं जोड़ा गया है/बिल्कुल नाम मात्र जोड़ा गया है जहाँ से गांव का वर्तमान में नाम है इसे किसी अन्य लेख में पूरी प्रमाणिकता ओर विस्तार से लिखा जायेगा  अतः इसे निराशापूर्ण भाव ना लिया जाये  ओर लेख में कई तथ्य जिनमे महत्वपूर्ण प्रमाणिक तथ्योन के बारे लेखक पूर्ण  ास्वत नहीं हैं कुछेक की प्रमाणिकता पर अभी पड़ताल जारी है। अतः इसे अंतिम ना समझे इसमें कई सुधार होने बाकि हैँ।आसा करता हूं आप पढ़ कर राय ओर सुझाव जरूर देंगे। कोई गलती हो तो क्षमां प्रार्थी हूं। जल्द ही संभव सुधार किये जायेंगे।  धन्यवाद। )

बाबा भोला गिरी समाधी धाम स्थल पर लगी शिव प्रतिमा 
सती माता मावलीयों का स्थान 
प्राचीन मैप जिसमें धनुष के आगे बाण नुमा भाग खेड़ी तलवाना है। 
पुराने कुराड़ वाले माता मंदिर का प्रतीकात्मक चित्र 
ऐतिहासिक इमली नीम का प्रतिकात्मक चित्र 

खैर ऋषि का उपदेश देते हुए प्रतीकात्मक चित्र। 
हवाई मैदान ओर फूटबाल स्टेडियम खेड़ी तलवाना बाबा भोला गिरी मंदिर -हर्बल पार्क. 
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मेरे गांव के सहिदों को नमन करता हूं नमन करता हूं इस भूमि के उन लालो को जो देश सेवा के लिए न्योछावर हुए ओर नमन करता हूं उन सब को जो छाती खोल दुश्मन के सामने खड़े हो गए  ओर आज भी रक्षा के लिए सीमाओं पर खड़े हैँ। 
नमन करता हूं उन वीरों को जो मुगलों से लड़े ओर उन माताओं को जो सतीतव को प्राप्त हुई।उन वीरों को जिनने मातृभूमि की रक्षा की आग दिलों मे जलाये रखी ओर देश सेवा का प्रण लिया। विभिन काल खंडों की सहादत को नमन।
नमन करता हूं ऋषि परंपराओ की नीव को ओर इस वन  भूमि के आदि इतिहास को जिसने जाने अनजाने मे भी अपनी पहचान बनाये रखी जिसके कारण ये छेत्र आज मजबूत ओर विकास की राह पर है ओर एक दिन हरा भरा ओर पूर्ण विकसित आत्मनिर्भर छेत्र होगा एसा मेरा मानना है। 
मेरा लिखने का उद्देश्य इस वन छेत्र को पुनः वन छेत्र बनाना है क्या ये संभव है हाँ ये संभव है पेड़ लगा कर ओर वर्षा जल का संरक्षण करके। हमें अंग्रेज सभ्यता को छोड़ ऋषि सभ्यता का अनुसरण करना होगा यदि हमें प्रगति चाहिए। ओर विकास करना है तो जीवों पेड़ पौधों से प्रकृति से प्यार करना सीखना होगा यही आदि काल मे इस क्षेत्र मे होता था।....*..*..*..*.


कहते हैं की आदि काल मे ये क्षेत्र ब्रह्मताल ओर ताल बन के नाम से जाना जाता था पूरा वन छेत्र था राजवंशीयों ने इसक्षेत्र को ऋषि मुनियो के रहने के लिए दिया था ओर बहुत सुन्दर फूल वनस्पति ओर जीवों से संरक्षीत था 
जंगली जीव ओर वनस्पतियों को भी यहाँ संरक्षण था। जब मैने अध्यन किया तो पता चला वर्तमान में यहाँ ना यहाँ कोई पहाड़ है न कोई तालाब है ना अभी तक कोई शिला लेख मिला तो इस  क्षेत्र मे कैसे पता चले की क्या था तो पुराने ग्रंथो ओर पिछली  शताब्दीयों  की ओर यहाँ की जैविक बनावट तथा भूगोलीक स्थिति का अध्यन किया डॉ अलक्टर को पढ़ा ।पता चला जहाँ मानव  ने रहना सुरु कर दिया वहाँ लगातार परिवर्तन होते रहते हैँ जबकि जहां मानव नहीं रहता वहाँ पर बहुत कम ये चीज देखने को मिलेंगी। वैसे किसी बालू के टीले पर आप रहो ओर भारी पत्थर लेकर जाओ ये  
ये संभव नहीं सायद इसी कारण यहाँ कोई शिलालेख नही मिला। लेकिन बालू मे जल सत्र तालाब का होना यहाँ की वर्षा जल संग्रह तकनीक की तरफ ध्यान ले जाता है। बिना स्पस्ट तकनिकी प्रयोग के बालू मे जल नहीं रुक सकता। खेड़ी की बसा बालू के ढेर टीबबे पर होना ओर यहाँ प्राचीन काल का तालाब होना यहाँ सभ्यता के विकास का सबसे बड़ा सबूत है। वन छेत्र का होना तो काफ़ी इतिहासकार बता चुके हैँ ओर पीपलाद ऋषि बाघोत, उद्दालक ऋषि श्याणा चवन ऋषि ढोसी महेन्दरगढ़ आदि तो उल्लेखित हैँ ही लेकिन सायद इतिहासकार इनके बिच का वो ऋषि स्थान छोड़ गए जहां इन सब का वारता प्राचीन काल का विद्यालय ओर गुरु स्थान था जिसे ब्राह्म ऋषि खैर ने बसाया था नाही सायद उद्दालक ऋषि के गुरु ओर धनोंदा गांव के बसाने वाले धोम ऋषि का कहीं जिक्र किया है हालांकि वर्तमान में ये नाम अजीब नजरिये से देखे जाएंगे धोम ऋषि जिन्होंने आरुनी की गुरु भगति से प्रभावित होकर सीधे ही अल्प आयु मे ब्राह्म ज्ञान दे दिया था। इन सब की गवाह इस क्षेत्र की भूमि है जो आज भी हिरे पैदा करती है यहाँ के प्रगतिसील  होने पिछड़े होने के कारण ये एक गांव मात्र रह गया ओर बाबा भोलागिरी जैसे ब्रह्म ज्ञानी पुरुष भी खेड़ी तलवाना में ही पैदा हुए हैं। विकास की गति कम होने का कारण क्या रहा ये भी अहम सवाल है।इसका कारण क्षेत्रयहाँ की भोगोलीक स्थिति है ये री रोजगार नौकरी  मे गया बहार जाकर बस गया यहाँ के विकास पर ध्यान नहीं दिया।  वोट बैंक जातिगत राजनीती के कारण सामूहिक ओर राजनैतिक विकास ना हो सका ओर विकास की सोंच के लिए एकजुट होना जरुरी है राजपूत बहुल ओर आपसी फुट भी एक कारण रही। अचंभित करने वाली बात ये है की 5000से ज्यादा आबादी वाला गांव खेड़ी जिसमें एक घर मे एवरेज  3लोग आर्मी मे कार्यरत हैँ वहाँ की गलियां ,पिने के पानी का बुस्टार् अब चालू हुआ है कोई बस स्टैंड नहीं है  बस स्टॉप हैँ उनके आसपास भी दुकान विकसित  नहीं है आयुर्वेदिक चिकित्सा के नाम पर एक है सी वो भी ज्यादातर बंद रहती है।सामूहिक सावरजनिक शौचालय नहीं है।  बैंक है ,पर एटीएम नहीं है सबसे बड़ी बात तो गांव मे रोजगार का कोई  सदन  नहीं  युवाओं का पलायन तय है पढ़ो ओर बहार जाओ।जब उज्जवल गांव खेड़ी ,ओर वीर भूमि स्लोगन पढता हूं तो सोंचता हूं क्या मेरे गांव मे हर जगह बिजली की लाइट गली मे लगी है क्या कही भी कीचड़ नहीं होता। क्या जोहड़ तालाबों की मुंडेर पक्की है। बहुत से चीजें हैँ जिनपे सोंचा जाना चाहिए। ओर वो अखरती हैँ उनको सरपंच या सरकार सही नहीं करेंगी उन्हें हमारी जागरूकता सही करेंगी। खेड़ी एक संपन्न गांव है ऐसे एक उदाहरण बन कर सामने आना चाहिए। पर इतना जागरूक क्या यहाँ का युवा है क्या आर्मी के आलावा वो कुछ सोंच पाता है।.
क्या इतने बड़े गांव मे कोई छोटा मोटा उद्योग केंद्र है क्या कोई आईटीआई पोलटेक्निकल स्कूल कॉलेज है। सायद कोई नहीं है तो क्या विकास सिर्फ देश सेवा भाव तक ही सिमित है। पंचायत क्या अपने उद्देश्य मे सफल नहीं हो पायी। क्या दूसरे गाँवो की हम बराबरी कर पाए जैसे सेहलनग, स्याना, नौताना, चिड़िया,आदि। हालांकि मेरा उद्देश्य किसी पे ऊँगली उठाना नहीं मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूं की विकास की सामूहिक सोंच ओर सामूहिक प्रयास से ही ये  संभव है सायद हमारी सोंच मे ही कमी रही है मैं राजस्थान के 2ऐसे गांव जनता हूं जिन्होंने अपने प्रयास मेहनत ओर लगन से वर्षा जल संग्रह कर पेड़ लगा कर अपने छेत्र का नाम रोसन ओर विकसित किया है पिछले 5साल मे इन्ही के कारण वो सेल्फ डिपेंड गांव बन गया है। क्या हम वर्षा जल नहीं रोक सकते (संग्रह )क्या हम 5पेड़ प्रति व्यक्ति नहीं लगा सकते। ऐसा हो सकता है अगर हमारे अंदर इच्छा सकती हो ओर कुछ करने का जज्बा हो।  आप अपने काम नौकरी करिये विद्यार्थी हैँ तो पढ़ाई करिये ग्रहणी है खाना बनाइये पर अपना भविष्य उज्जवल करने के लिए धन जोड़िये ओर वो धन है पेड़ पौधे जो आपको फल, फूल, लकड़ी, रोजगार, सेहद, वर्षा पर्यटन खेती सब कुछ देंगे आपको कहीं नहीं जाना आपके गांव मे सब कुछ आएगा सिर्फ 5साल पौधे लगाइये, सादी पे 21, जन्म पे 11, ओर हर शुभ काम पे 2पौधे लगाइये। फिर रिजल्ट देखिये। आपको उनकी सम्हाल करनी पड़ेगी पानी देना पड़ेगा ओर वोभी बदले मे आपको दुलार ओर छाया देंगे।.... 
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हमारा इतिहास क्या है क्या हम यूँ ही बिना पानी के ऐसे ही थे क्या इसी तरह गिनती के पौधे यहाँ थे। मेरा जवाब है बिलकुल नहीं। पदार्थ स्वरूप बदलता है मूल नहीं ये विज्ञान का नियम है
शायद इसी नियम से हरचीज धरती की बंधी है प्रकृति में चक्रण प्रक्रिया चलती है क्योंकि घूमने से ही धरती पर मनुष्य और ये प्राकृतिक रचनाएँ बनि हैं।मनुष्य ने कार्बन डेटिंग विधि से किसी चीज की लंब सम्ब आयु निकालनी
सीखी उससे पहले एक विधि थी नजदीकी अध्ययन यानी अगर आपको अपनी आयु जाननी है तो आप आपके आस पास या हमायु लोगों की उम्र से अंदाजा लगा सकते हो अगर आप स्वयं की नही जानते तो।महेंदरगढ़ जिला बहुत ऐतिहासिक जिला रहा है।इसके छोटे छोटे गाँवो के पीछे लम्बी चौड़ी ऐतिहासिक कहानियां जुड़ी हैं जब मैने अपने गांव के बारे में जानने की इच्छा की तो बहुत लंबी चौड़ी कहानी सामने।मैने बचपन मे सुना था कि खेड़ी गांव राजस्थान से आये तंवर सरदारों ने बसाया था।जो शायद खेतड़ी पाटण की तरफ से यहां आये थे.|दो भाई थे एक ने खुडॉना दूसरे ने खेडी गांव बसाया था जो एक मिटी के बालू व पथरीली टिब्बे पर बसा था बाद में इसके दक्षिण पश्चिम में तलहटी में भी लोग बस गए जहां आज का तलवाना गांव है।टिब्बे पर बसा होने के कारण इसका नाम खेडी पड़ा।लेकिन ये --इस गांव का इतिहास ही युद्धों से भरा है.।खैर ओर अरि इन सब्दों का संयोग भी खेरी ही होता है ये मुगलों का दिया नाम है सल्तनत उनकी थी और यहां के राजपूत ओरंगजेब को तो यहां से मेरठ तक खदेड़ आये थे।दुर्भाग्य जयपुर ओर पानीपत से लाभ लेकर वो पुनः इस छेत्र में आये और खूनी आग का खेल खेला इस छेत्र में ही आग लगा दी।और कंटीले झाड़ की तरह अड़ी ये खैर की यानी सत्रु की भूमि राख हो गई।अरी का अर्थ दुश्मन ओर कांटा होता है ओर खैर का अर्थ कथथा ओर खैर एक पेड़ है जो बाबुल जैसे कांटे वाला होता है प्राचीन काल मे ओर आयुर्वेद मे इसका अपना मेहतव था l आज भी पतंजलि कंपनी खादरादी वटी इसी से बनाती है लेकिन मुग़ल काल मे ये कातथा बनाने मे यूज होता था जो पान मे लगता था तब चुने के साथ ये महेन्दरगढ़ से जाता था आगरा दरबार तक। ओर दिल्ली भी। खैर भी ओर यहाँ की कांटे जैसी दुश्मनी मुगलों को ये नाम लेने पर प्रोत्साहित करती होंगी इस इलाके की कटुता की कारण ही इस छेत्र मे कोई मुगली नाम नहीं हैlतलवाना को यह नाम पाकखतो भाषा के तालिबान शब्द से मिला जिसका अर्थ है शिक्षा का घर यानि विद्यालय यहां राजपूत लडके तलवार बाजी गुड्सवारी और युद्ध की शिक्षा लेते थे आदि काल की बात करें तो हालांकि  इसकानाम  ताल-बन था यानि वो वन छेत्र जिसमें ताल हो. आधुनिक समय मे ताल इमली वाला जोहड़ के नाम से प्रसिद्ध है और तलवाना एक अलग पंचायत बन चुकी है। लेकिन युद्ध और लड़ाई की बात आये तो खेड़ी का होली प्लेस 'माता मावली 'प्लेस को हम याद ना करें ऐसा नहीं हो सकता। इस कस्बे की सान हैं वो राजपूत माताएँ जिनने आपने पति और बच्चे युद्ध मे कुर्बान किये और मुग़ल उनको छू ना सके इन पति वर्ता औरतों ने अग्नि समाधी ले ली.ये स्थान इन्ही माताओं की स्मृति मे बनाया गया है। इस छेत्र मे जो भी नर बच्चा होता है तो उस परिवार की तरफ से माता मावलीयों को चावल भोग दे कर उनकी आयु और स्वस्थ की कामना की जाती है.। ये गांव की महत्वपूर्ण रिवाज़ है और ये स्थान अति पवित्र है। वर्षों से इसे माना जाता रहा है।इनकी कहानी गहरी हैं जो राजपूत माताएं अपने बचचो को बताती हैं।
...... 1857की क्रांति हो चाहे कोई विसव युद्ध या कारगिल वॉर हो चाहे 1965, 1967ओर 48की लड़ाई यहाँ के वीर सैनिको ने मातृभूमि के लिए जान की परवाह किये बगैर बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।  ऐसे ऐसे उदाहरण हैँ जिनके 6बेटे हैँ ओर सब को सेना में भेज दिया। ब्रिटिश काल में द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब भारतीय सेना जापान से बर्मा में लड़ाई लड़ रही थी तब बर्मा बॉर्डर जलीय जहाज से 14घंटे में पार होता था उस वक्त कब कहां जापानी हमला कर दें वहाँ तक पहुँच जाना भी मुश्किल काम होता था। ऐसे दुर्गम युद्ध छेत्र में खेड़ी गांव के मात्र 25वर्ष के सूबेदार रामसरूप सिंह तंवर को जब लड़ाई की कमान सौंपी गई तो उन्होने चुनौती को ना सिर्फ स्वीकार किया बल्कि गंभीर ओर  घायल अवस्था में में भी 7-8दुश्मन सैनिको को ढेर कर दिया हालांकि इस प्रयास में वो सहीद हो गए लेकिन मरणोपरांत  ब्रिटिश सरकार ने इसे बहुत बड़े सर्वोच्च सैन्य वीरता मैडल विक्ट्री क्रॉस से सम्मानित किया जो छेत्र के लिए गर्व की बात है। कारगिल वॉर में सहीद महेश सिंह बड़ी वीरता से देश के लिए लड़े ओर सहीद हुए। 
ये परम्परा आधुनिक ही नहीं प्राचीन है इस भूमि पर वीरों का दबदबा रहा है ये सिर्फ दो उदाहरण हैं इसी लंबी चौड़ी दास्तान हैं जो छोटे से लेख में बयां नहीं हो सकती।
देश ओर राज्य  के  इस इलाके में तो यहाँ के वीरों ने दुश्मन को फटकने नहीं दिया। किसी समय में खेड़ी तलवाना के तंवर वीर योद्धा राजा अनंगपाल के दरबार की सान होते थे। उनके सम्मान में सपेशल घोड़े ओर रथ दरबार से आते थे वन भूमि में रुकते थे ओर उन्हें लेकर जाते थे। महाभारत काल के वन गमन के दौरान यहाँ पर पांडवो के रुकने की बात की जाती है। इसके अलावा ऋषि काल की कई कहानिया भी इस छेत्र से जुडी हुइ हैँ संख् ताल की कहानी जिसमें यहाँ एक ऋषि जिनको खैर नाम दिया गया है ने धरती पर समुन्दर मंथन में गिरे अमृत को मानव सेवा हेतु इक तालाब के जल में निरूपित कर दिया था जब उन्हें पता चला की विष्णु भगवान ने शंख भेज कर उनकी अहारी करवाई संखो को भूमि बध सूक्ष्म जीव बना दिया कर  अमृत बून्द का सोधन कर ब्रह्म ताल से निकाल उसे पेड़ पोधों को बरसात कर पीला दिया कहते हैँ पौधों पेड़ों में उसी अमृत के कारण जीवन सकती है जो बीमारियां दूर करती है ऐसा अंदाजा लगाय गया है क्योंकि ढोसी पहाड़ ओर चवन ऋषि की भूमि 8-से9 km मात्र दूर ह।
विभिन्न ऋषियो के समागमन की कहानी भी यहीं से जुडी है,  इमली -नीम की कहानी ऐतिहासिक तोर पर जुडी हुइ है। इसके अलावा बॉस मिट्टी से जल संग्रह की कहानिया ओर बहुत से कथाएं यहाँ से जुडी हैँ जिनको जानना यहाँ के युवाओं के लिए भविष्य को उज्जवल बनाने हेतु जरुरी है क्योंकि जब उन्हें आधार नींव का पता होगा तभी वो ईमारत बना पाएंगे। बाबा भोला गिरी महाराज के उज्जवल धाम पर बैठ कर जब धर्म की चर्चा होती है तो बार बार ये दबा इतिहास बोलता है लेकिन बहुत कम ग्रामीण इस को सुन पाते हैँ जिस दिन इन्होने इसे सुन लिया उसी दिन ये गांव प्रगति के पथ पर बढ़ जायेगा। 
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******************-***********************सबसे पहले मैं मेरी पोस्ट को पढ़ने वाले सभी पाठकों को नमन करता हूँ की आपने मेरी लेखनी से निकले इन शब्दों को पढ़ा ओर इस विषय पर लिखे गए लेख में रूचि दिखाई,लेख में दिए विचार मेरे निजी विचार हैँ इनमे कोई आंकड़ा कोई शब्द या पंक्तिया दूसरे किसी लेखक से नहीं लिए गए हैँ ना ही किसी की कॉपी की गई है। फिर भी अगर कोई आपत्ति होती है तो आप मुझे संपर्क कर सकते हैँ।   प्यारे  विधार्थीयो ओर पाठक मित्रो  मेरा उद्देश्य विषय परक सटीक महत्वपूर्ण ओर सही जानकारी आपको देकर आपके ज्ञान संग्रह को बढ़ाना है ओर मेरी कोशिस रहती है की तथ्य परक बात की जाये वही करता भी हूँ परन्तु इंटरनेट पर  लेखन का ज्यादा अनुभव ना होने के कारण लिखने में भाषागत वर्तनी सम्बंधित अशुद्धि रह गई हैँ अतः आपसे अनुरोध है कृप्या शब्दों के भाव को ही महत्व देकरअशुद्धि को  इग्नोर करें। ओर अगर फिर भी आपको मेरे शब्द कहीं परेशान करें तो आप मुझे :-vikashji 354@gmailcom (mb-9812073306whatsup)पर लिख सकते हैं, लेख में कोई गलती हो तो मैं क्षमा प्राथी हूँ।अगर आपका कोई सुझाव है तो आप मुझे ऊपर दिए नो पर संपर्क कर सकते हैँ।  
संबंधी लेख:संदर्भ
आभार:https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8C%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF
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https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95_%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE

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