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जिस डाली पे बैठे वही काटो -लघु कहानी

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बैठो ओर डाली काटो ज्ञानियों के काम लोभ वस ओखली में सर देना महाज्ञान का प्रमाण छोटी कहानियां 1. डाली पर बैठे और उसी को काट रहे व्यक्ति को देख जब समय ने कहा कि नीचे गिरेगा पिछवाड़ा टूटेगा तो व्यक्ति ने जवाब दिया कि क्या तू मुझे डाली काटने में जो मजा आ रहा ह वो दे सकता है।समय बोला मजा या पिछवाड़ा चुनाव आपको करना है।थोड़ी देर में डाली टूट गई।समय दुबारा आकर बताता है दर्द सहने का अभ्यास करो नजदीक कोई अस्पताल नहीं है। 2.कैसा जमाना आ गया लोग चौमासे में टूटी छत को छोड़ बहार भीग रहे मूसल की ज्यादा चिंता करते हैं।बिल्ली तो जानवर है हंडिया चाटते चाटते हंडिया में सर फसा लेती है और आखिर में सर बचाने में हंडिया टूट जाती है यानी थोड़ी मूर्खता में एक निश्चित हानि ।पर मूर्ख इंसान जो ज्ञानी बनता है प्रैक्टिकल कर्ता है लोहे के बर्तन के साथ यही अब उसके सिर का क्या होगा भगवान जाने। सीख -पहली कहानी-वैसे तो आज के युग मे आपको जरूरत है नहीं पर फिर भी मेरा काम बताना है। इंसान स्वार्थी है लेकिन बड़े स्वार्थ के लिए छोटा इग्नोर करना चाइये बुद्धि पेड़ के पास भी है पर जब आप उसको काट ही दोगे तो पेड़ नीचे पड़के आपको...

आओ तुम्हे नया गीत सुनाता हूँ।

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जाने क्या होगा इस जमाने का सोंच कर हर बार  मुस्कुराता हूँ आओ तुम्हे एक नया गीत सुनाता हूँ, आओ तुम्हें तुम्हें नया गीत सुनाता हूँ, ओरिजनल से हो गया जमाना वरचुवल, कास कोई आँसू मेरे कर देता वरचुवल, कास कोई खुशियां कर देता डिजिटल, सुकूँ मिले कुछ मै इंसा यही चाहता हूँ, खुद को भी देखिए आप अपने करिये वैसा जैसे हैं सपने बदलते जमाने में मैं भी बदल जाता हूँ ऐसा नहीं कि आप को भुलाता हूँ। जुड़े हैं हजारों लोग कई मंचो पे, सैंकड़ो से लाइक किया जाता हूँ, इंटरनेट पे हूँ पॉपुलर काफी, बदली हुई हवा से ख़ौफ़ खाता हूं , हो जाता है ट्रेंड कुछ पहन लूं तो मजबूरियों पे ट्रोल किया जाता हूँ उदासी ना पसंद लोग करते है ,  अकेला हूँ, जबकि कितनों से फॉलो किया जाता हूँ, जीने के मायने बदल गए कितने, दूर रहने लग गए लोग अपने, अकेले पन की न लगे आदत सब को विकास बार बार अपनी याद दिलाता हूं। कविता:विकास तंवर खेड़ी # कविता विकास तंवर #poem vikash tanwar #नया गीत

#कविता- विकास तंवर खेडी *****।।।प्रकृति को ना छेड़ो विचार करो।।।*****

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विचार कभी न खत्म होते एक बहुमस्तिक के परपार हुआ,  विचार पे अति मनुज कर ली तब नया नया आविष्कार हुआ, उसी में आई विभिन्नता ओर मेहनत तो सुंदर सृष्टि का अवतार हुआ, ओर अगन लगी जब इसमे तो जग में हा हा कार हुआ, जाल बनाने वाले ने वृहद मे न कोई डोर भी बहार करी,  मनुज जीव की बनी दुनिया मानव के हाथ में सौंप धरि,  इसी जाल के स्वामी ने जाल में ही रहगुजर करि,  मैन ने मंदिर मस्जिद घर लिए नहि जाल पे कभी गौर करि,। मसीन बना ली लाखोँ इनका ही फिर गुलाम हुआ, फिर द्वंद क्रंति लाएगा, क्या ये पढ़े लिखो का काम हुआ, इस लबादे से पत्तों के वस्त्र थे अछे, मानव उनसे भी तू बाहर हुआ, जहर उगा फसलों में नोचि प्रकृति खुद बी खरपतवार हुआ, चक्र कर्म चलता है सब पर गौर विचार करो, नव उत्पति विनास से होती है इस पर भी कभी ध्यान धरो, आधुनिकता में समावेशित रीत संस्कार यही चित में धरो,  जो सत्य लिखा वेदों में वो जीवन अंगीकार करो। कर सकते हो थोड़ा बहुत मानव जीवन पे विचार करो, प्रकृति को यूं न छेड़ो अपने अंदर ही सुधार करो।  # विकास तंवर खेड़ी०*०*०*० #vikash tanwar kheri # Poem विकास तंवर खेड़ी