मैं वृक्ष हूं कविता by #vikash Tanwar Kheri #विकास तंवर खेडी

मैं वृक्ष हूं मैं बहार हूं,

मैं मानव रूपी शिशु को प्रकृति का उपहार हूं,

देता हूं जीवन खोल कर, सुध शीतल मैं हवा,

छाया मेरी सोखती धूप का एक एक रवा,

इंसानी जरूरतों का पूरक हूं हर तार हूं,


मैं वृक्ष हूं मैं बहार हूं,

मेरे कण कण से बना पुष्प फलों का गुलसिता,

फर्नीचर रंगपेंट में मैं उतरता आहिस्ता आहिस्ता,

हर चीज में खुशबू मेरी मेरा पेट तक है रास्ता,

इतना ही नहीं अंतरिक्ष तक मैं ले गया तुम्हे पार हूं,


मैं वृक्ष हूं मैं बहार हूं,

हे मानव पहचान करो अपने भाग्य पे ना गुमान करो,

काटो तो लगाओ भी प्रकृति पे एहसान करो

जीवन हैं ये मित्र तुम्हारे पेड़, हरा भरा उधान करो,

पानी खाद दो सम्हालो, इनका थोड़ा सम्मान करो


विकास तंवर खेडी  मैं कहता यही हरबार हूं।

मैं वृक्ष हूं मैं बहार हूं।

    

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