महेन्दगढ़ का सुनहरा इतिहास सिर्फ और सिर्फ तब तक अज्ञात जब तक सरस्वती नदी पर काम नहीं होता वैदिक सभ्यता की सारी परतें इसकी खोज के साथ ही खुलती चली जायेंगी।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। महेन्दगढ़ ऋषि मुनियों की भूमी रहा है। आर्य युग से पूर्व वैदिक सभ्यता का विकास हुआ उस काल में महेन्द्रगढ़ रेवाड़ी छेत्र काफी विकसित था। यहां के विसय में इतना तक कहा गया है। यहां किसान एक मौसम में दो फसलें ले लेता था यानी वर्ष में चार जो आजकल दो तक ही सीमित हैं।। महेन्द्रगढ़ में कृषि और वन छेत्र होने के कारण ऋषियों ने अपनी सरण सथली और आश्रम बनाए। यहीं पर बरसों तक गुरुकुल और पाठसालाएं भी चली। समय अंतराल और हजारों बरस बरसों के अंतराल पर बहुत सथाई तो नहीं लेकिन विश्वसनीय परमान आज भी मौजूद हैं, ऋषि धोम जिनके शिष्य आरूणी थे वो धनोंदा, खैर ऋषि खेड़ी, बाघोंट में पीपलाद ऋषि, घोसी में चवन ऋषि, स्याना में उद्दालक ऋषि और नोटाना में भी ऋषियों के आश्रम थे। यहां नदी घाटी सभ्यता होने के परमान ये हैं की बाघोट धाम के शिवलिंग पर सुध नदी जल से चढ़ाया जाता था ।जो वेदों में लिखा है। और चवन ऋषि ने ५४जड़ी बूटियों से चवन प्रास का निर्माण किया था।जो आजकल वाले चवनप्रास से बहुत ज्यादा उपयोगी बताया जाता है। वो जड़ी बूटियां इसी वन छेत्र में पैदा हुई होंगि। इसके अलावा आरूणी जो ऋषि धोम के समकालीन और उनके शिष्य थे। इनका भी पवित्र नदी छेत्र के मुहाने में लेट कर जल रोक लेने का जिक्र शास्त्रों में आता है।सरस्वती नदी घाटी की विभिन्न रीसर्च भविष्य में काफी राज खोलेंगी। क्योंकि सिंधु घाटी से पूर्व युगीन सभ्यता इस इलाके में रही है। जो १५०० ईसा वर्ष पूर्व की बात है। वैदिक यज्ञ वेदियों और यज्ञ उपकरणों के विकास कर्म के अध्ययन से पहले ही ये बात सामने आ चुकी है की वैदिक काल खंड सिंधु और आर्य सभ्यता से पहले हुआ है। क्योंकि रिसर्चफेलो और खोजकर्ताओं द्वारा इस काल में यज्ञ परक्रिया में काफी परिवर्तन महसूस किए थे साथ ही उस समय के बर्तन और अन्य आम अपयोग के धात्विक सामानों में। हालांकि कुछ अवसर वादी राजनीतिक लोग इसके विरोध में भी प्रचार कर रहे हैं ये कहकर की हिंदुवादी एजेंडा ह। भी हो वर्तमान में ये इलाका भौगोलिक विज्मता के कारण पिछड़ गया है ।वो किसी युग में जन्नत और सर्वग रहा है।जिस इलाके में हजारों खनिज उपलब्ध हों कल्पना कीजिए उस इलाके में जब सुध नदी का पानी रहा होगा तो दृश्य क्या रहा होगा। मुझे फक्र है मैं महेन्दगढ़ के ही एक गांव का अंग रहा हूं।जो वैदिक युग में काफी विकसित गांव रहा है। मेरा पिछला लेख २०१८.,२०१९ में इसी सब्जेक्ट पर था।
विकास तंवर खेड़ी मूल लेख
about mahendergarh and Village Kheri talwana
by Vikash Tanwar Kheri
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मेरे गांव के विसय में मेरे २ शब्द:
नमस्कार
आदरणीय भाईयो और बहनों मैने पिछले लेखों में महेन्द्रगढ़ को रिसर्च का विसाय बताया था। इसे ऋषि भूमि कहा था । कुछ लोग इसे मजाक और उपहास समझते रहे हैं। कयोंकि मेरा मेरे गांव के उपर प्राचीन युगों की गहरी रिसर्च और अध्ययन के बाद मैने अपने गांव को सरस्वती नदी छेत्र से जुड़ा हुआ ऋषि भूमि बताया था। और ये सत्य भी है की खेड़ी तलवाना एक ऐतिहासिक भूमि है।मैं आज भी कहता हूं की परक्रीर्ति में ईश्वर की बनाई चकरीय परनाली चलती है। किसी समय में हमारी ग्राम भूमि राजवंसियों की अध्ययन सथली रही है। यहां ऋषि संगम समागम रहा है इसी प्रेरणा से यहां राजपुत देशभग्त वीर और सेनानी पैदा होते हैं।ये भूमि की प्रेरणा और समृति ही है ।आज मेरी बात बेसक किसी की समझ ना आए की क्या वास्तव में खेड़ी तलवाना ऋषि भूमि थी की नहीं और ऋषि भूमि होने का महत्व क्या है, हमें क्या करके इस देव भूमी से ज्यादा लाभ मिल सकता है।
बहुत से ऐतिहासिक लेखक ये मान चुके है। धोम ऋषि धनौंदा।,उद्दालक ऋषि स्याना, बघोत में ऋषि
ऋषि, उसी इलाके में अस्तावक्र जी जो बाद में महेन्द्रगढ़ में बसे वो इस इलाके में रहे थे।ये ऋषि पाठशाला और गुरुरकुल छेत्र थे। चववन ऋषि की कहानी जो सर्व विदित है और धोसी पहाड़ी तीरथ स्थल पर और बहुत जगह ऐसे परमान भी मिल चुके हैं। बाकी और अगले कुछ बरसों की रिसर्च में सबित हो जायेगा क्योंकि सरस्वती नदी लोलुप्त अवस्था में है और इतिहास के गहरे राज इसी में दबे हैं महेन्द्रगढ़ के दुर्भाग्य की बात ये है के ये भूगर्भीय ज्वाला के एक मुहाने पर है इसे में जल और सरस्वती नदी अवसेस ढूंढने में परेशानी जरुर आएंगी।
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अन्य संदर्भित लिंक
https://satyagrah.scroll.in/article/102115/controversies-regarding-lost-saraswati-river-and-haryana-governments-effort-revive-it
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अन्य संदर्भित खबर
रणघोष न्यूज पेपर दिनांक २१/१२/२१ दैनिक रणघोष ने भी छापा है।
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